रविवार, 29 जून 2014

नये शासक का प्रेम गीत

हमने कहा था
बहुत हुई मंहगाई, बहुत हुआ भ्रष्टाचार
हमें भी करने दो वही इस बार
बस बनने दो हमारी सरकार
बस बनने दो हमारी सरकार

अब तो बन गयी, तो हमारी बन आई
अब हम बढ़ायेंगे हर रोज़ मंहगाई
तुम्हें जो करना है कर लो
मरना चाहते हो तो मर लो

तुमने दिये वोट, नोट तो नहीं दिये
जिन्होंने दिये नोट, हम इक दूजे के लिए
"अच्छे दिन" लायेंगे
जिनका खाया नमक
उन्हीं के गुन गायेंगे

हम जानते हैं पांच बरस बाद
हम तुम्हारे पास आयेंगे
जैसे उनको चटायी धूल अभ्री अभ्री
तब हमको भी चटायेंगे

और तब फिर से इसी घूरे के दिन बहुरेंगे
तब ये भी तुम्हारी भाषा में गली गली कहेंगे
'बहुत हुआ भ्रष्टाचार, बहुत हुई मंहगाई
फिर से हमें गरीब जनता की याद आई
बहुत सह लिया अत्याचार,मंहगाई की मार
अब की बार फिर से हमारी सरकार

तब वे भी  अच्छे दिन के पांसे फेंकेंगे
फ़ैज़ साहब की तरह तुम जैसे कवि तो सिर्फ़ "देखेंगे"
मगर यार!
उनकी तरह किसी कवि  ने
न तो किया  इश्क़ न करते अब काम
तो फिर
जो आये उसको भी करो सलाम, जो जाये उसको भी सलाम
जय हिंद !!!!!!!!!!!!


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें